वैसे ये लेख काफ़ी पर्सनल होने वाला है, क्योंकि इसमे मैंने कोविड-काल के अपने अनुभव साझा किया है। कितने मुश्किल हालातो से हम सब लोगो ने इस महामारी का सामना किया मैंने इन सब बातो पर प्रकाश डालने की कोशिश की है।
जब दुनिया में कोविड -19 नाम का चीनी वायरस आया, तो हम सबकी जिंदगी उससे बहुत प्रभावित हुई। और लोगो की ही तरह मैं भी टेंशन में था, लेकिन अपने अंदर की आवाज ने मुझे शांति रखने के लिए कहा, और जो भी मैं कर रहा हूं, बस उसे करते रहने के लिए कहा। कोविड -19 तो खतम हो गया, और अब मैं देख सकता हूं की मेरे अंदर की वो आवाज सही थी। मैंने ये एहसास किया की जो कुछ भी हम जानते थे वो सब बदल रहा है, उसके साथ ही रिश्तो और अपनी फैमिली लाइफ को भी अब हम और ज्यादा प्यार से संभालना सीख रहे हैं।
पहले जो चीजे असंभव लगती थी, अब उन मुश्किल से मुश्किल कामों को भी हम आसानी से करना सीख रहे हैं। मुझे ये पहली बार तब समझ में आया जब मेरे पापा के कैंसर का हम लोगो को पता चला। सिर्फ 4 माहे में ही, इस जानलेवा बीमारी की वजह से वो स्वर्ग सिधार गये। उसके 3 महीने बाद, कोविड-19 ने मेरी बहन को हमसे छिन लिया। सिर्फ 6 महिनो में परिवार के 2 सदस्यों के दुख और इस भारी नुकासन से निपटना हमारे लिए बहुत मुश्किल था।
मैंने पाया की मेरे पास एक इनर स्ट्रेंथ यानी की आंतरिक शक्ति थी जिसमे दुनिया के लिए दया और करुणा के रूप में कूट-कूट कर प्यार भरा था। और इससे पहले की मैं भी इस दुनिया से विदा लूं, मुझे इस दुनिया के लिए कुछ जरूर करना था। दुनिया इतने मुश्किल समय में है, फिर भी मैंने नकारात्मक बातो पर ध्यान देने के बदले सकारात्मक बातो पर ध्यान देना सीखा।
2020 ने दुनिया को न सिर्फ एक मजबूत कंपनी, बल्की एक मजबूत कम्युनिटी के रूप में एकत्र होने का भी सबक सिखाया। अब जब लोग ऑफिस से दूर अपने घर से वर्क फ्रोम होम करने लगे, तो उन कंपनियों को बचाए रखने वाले उन कर्मचारियों के लिए भी कंपनियों ने सोचा शुरू किया। अभी तक बस कंपनी और काम करने वालों के बीच में एक वित्तीय संबंध हुआ करता था, लेकिन अब वो बदल के भावनात्मक संबंध के रूप में उभरने लग गए।
भारत जैसे देश में ये देखना बहुत आशचर्यजनक था की कैसे डेली ऑफिस जाने वाले लोगो ने एकदम से अपनी जिंदगी को बदल के घर से काम करना शुरू कर दिया, और कैसे वो इस परिवर्तन के लिए अनुकुल बन गए। वैसे सुनने में ये किसी राजनीतिक पार्टी के नारे की तरह लग सकता है, जैसा सबका साथ, सबका विश्वास, सबका विकास सबका प्रयास इत्यादि। लेकिन ये सच है की पूरे कोविड-काल में हमने जिंदगी में आगे बढ़ना, आविष्कार करना और साथ मिल जुलकर काम करना जारी रखा।
हमने ये भी सिखा की कभी-कभी अपने जॉब या बिजनेस में चीजो को थोड़ा बदलना या उन्हे बदलने के लिए फ्लेक्सिबल होना चाहिए, ताकी समय आने पर ज्यादा परशानी ना हो। ये इस बारे में नहीं है की हम एक जॉब/बिजनेस के रूप में बस कैसे जीवित रहेंगे, बाल्की एक जॉब/बिजनेस के रूप में अपने आप को मजबूत बनाने के लिए हम क्या करेंगे। जरूरतो का पता लगाये, योजना बनायें और आगे बढ़ते चले जाएं। हमने महामारी की चुनोतियो का सामना करने के लिए पूरी दुनिया में ग्लोबल स्तर पर इनोवेशन और आविष्कार होते देखे हैं। पूरी दुनिया में कंपनियो ने अपने परिवर्तन की गति को तेज कर दिया है। अंग्रेजी में कहे तो ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’, यानी की जो सबसे योग्य है उस का अस्तित्व बना रहे। और आज का विज्ञान और हमारे वैज्ञानिक हमारी प्रजाति के बारे में अच्छा सोचने के लिए उपयुक्त हैं।
साथ ही हमने सीखा की इंसान हर चीज से ऊपर हैं, चाहे वो किसी कंपनी की टीम हो या हमारी कंपनी के निवेशक या सलाहाकर या उनके साझेदार। इंसानियत के रूप में, लोग सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। इंसानी प्रजाति को बचाए रखना और, साथ ही अर्थव्यवस्था को बचाते हुए, व्यवसायों को भी वैश्विक महामारी के बीच से निकाल के बहार लाना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन जिन कंपनियों ने अपने लोगो पर विश्वास रखा, वो बच गये, और सफल भी हुए। इस महामारी ने हमें बताया की हमारे जीवन में कौन वास्तव में हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हमने सीखा की रिश्ते किसी भी चीज से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट मायने रखते हैं।
अंत में मैं यही कहूंगा की लाइफ सरल और सिंपल है, इसे फ़ालतू में कोम्प्लिकेट करके जटिल मत बनाओ। इस जीवन को बहुत गंभीरता से न लें, और हर पल को एन्जॉय किजिये, उसका मजा लेते रहिये।
वैसे भी इक्कीसवी सादी के एक महान फिलोसोफर ने जो कहा है, उसे हमेशा याद रखियेगा।
वाई सो सीरियस (इतने गंभीर काहे हो)
– जोकर
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